मीडिया हाउसों के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गुहार लगाई है कि सोनिया गांधी के सुझाव को तव्वजो न दें
तमाम मीडिया संगठनों ने तीखी आलोचना शुरू कर दी है
भारी संख्या में पत्रकार बेरोजगार होंगे
चौथे स्तम्भ के प्रहरी संक्रमण काल में जी रहे हैं
कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से दिया गया बयान मीडिया संस्थान मनोबल को गिराने वाला है
विज्ञापनों पर दो साल के लिए रोक लगा यह पैसा कोरोना संकट से जूझने में लगाया जाए:सोनिया गांधी
लखनऊ। बीते छह साल से देश के लघु और मध्यम व बड़े अखबार तथा इलेक्ट्रिानिक चैनल आॢथक संकट का सामना कर रहे हैं। इस आॢथक संकट के चलते बीते छह सालों के अंदर देश के लगभग 700 अखबार और सैकड़ों चैनल बंद हो चुके हैं। दिन प्रति दिन केन्द्र और राज्य सरकारें विज्ञापन बजट को कम कर रही हैं। जिसकी वजह से भारी संख्या में पत्रकार बेरोजगार हो रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार मौजूद समय देश में लाखों की संख्या में पत्रकार बेरोजगार हैं। मौजूदा समय उनके सामने रोजी-रोटी का बड़ा संकट खड़ा हुआ है। अब बची-खुची कसर कोरोना बीमारी ने पूरी कर दी है। देश में लॉक डाऊन के चलते अधिकतर व्यापारिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो चुकी हैं। इसके चलते व्यवासायिक घराने भी विज्ञापन का बजट पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। बीते एक माह से केन्द्र और प्रदेश सरकार ने मात्र आंशिक तौर पर विज्ञापन जारी किए हैं। इससे देश और प्रदेश के लघु व मध्यम अखबारों की कमर पूरी तरह से टूट चुकी है। सबसे ज्यादा बिकने का दावा करने वाले दैनिक जागरण ने मुख्य पृष्ठ पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सुझाव की आलोचना करते हुए बड़ी हैङ्क्षडग में 'सोनिया के विचित्र सुझाव में दिखी आपातकाल वाली मानसिकताÓ से प्रकाशित की है। इस खबर के पीछे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मंशा की समीक्षा की गई है।
कोरोना संकट के बीच मीडिया संस्थान देश हित में अपने चौथे स्तम्भ की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। सदी के भीषणतम संकट कोरोना की मार से कराह रहे प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया को दो साल तक विज्ञापन प्रतिबंधित किए जाने का कंाग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का बयान जले पर नमक छिड़क जैसा रहा है। इससे बिलबिलाये छोटे और बड़े मीडिया हाउसों के प्रतिनिधियों ने कांग्रेस अध्यक्ष के बयान की कड़ी ङ्क्षनदा की है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गुहार लगाई है कि सोनिया गांधी के सुझाव को तव्वजो न दें।
सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरकार एवं सरकारी उपक्रमों द्वारा मीडिया विज्ञापनों, टेलीविजन, प्रिंट एवं ऑनलाइन विज्ञापनों पर दो साल के लिए रोक लगा यह पैसा कोरोना संकट से जूझने में लगाया जाए। केवल कोविड-19 के बारे में एडवाइजरी या स्वास्थ्य से संबंधित विज्ञापन ही इससे बाहर रखे जाएं। केंद्र सरकार मीडिया विज्ञापनों पर हर साल लगभग 1,250 करोड़ खर्च करती है। सरकारी उपक्रमों एवं कंपनियों द्वारा विज्ञापनों पर खर्च सालाना राशि इससे भी अधिक है। इस प्रयास से कोरोना वायरस द्वारा अर्थव्यवस्था व समाज को हुए नुकसान की भरपाई में मदद मिलेगी। इस बयान के बाद से मीडिया जगत में भूचाल आ गया। तमाम मीडिया संगठनों ने तीखी आलोचना शुरू कर दी है।
मीडिया की स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर होतीजा रही है। चौथे स्तम्भ के प्रहरी संक्रमण काल में जी रहे हैं। पहले एनडीए और यूपीए की नीतियों ने प्रिंट मीडिया की सांस रोक दी। इसके बावजूद मीडिया अपनी ईमानदारी और जिम्मेदारी निभाता रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण सुप्रीम कोर्ट के चार जजों को अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए प्रेसवार्ता करनी पड़ी थी। कोरोना जैसी प्राणघातक बीमारी के बीच बगैर कोई संसाधन और सरकारी सहयोग के अपने कर्तव्य निभाने में पीछे नहीं है। ऐसे में कंाग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का सुझाव प्रिंट और इलेक्ट्रिानिक मीडिया के लिए ताबूत में अंतिम कील ठोंकने जैसा है।
उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष ने कहा कि कंाग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का बयान भनदनीय है। उन्होंने तीखा प्रहार करते हुए कहा कि अपने कार्यकाल में विज्ञापन बजट का दुरुपयोग खूब किया था। अब नसीहत दे रही हैं। बीते कई सालों से विज्ञापन बजट काफी कम हो गया है। अगर केन्द्र सरकार और राज्य सरकार ने सोनिया गांधी के सुझाव पर अमल किया तो अधिकतर लघु और मध्यम अखबार व चैनल बंद हो जाएंगे। भारी संख्या में पत्रकार बेरोजगार होंगे।
न्यूज ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन (एनबीए) के अध्यक्ष रजत शर्मा ने कंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इस सुझाव का पुरजोर विरोध हुए कहा है कि ऐसे समय में जब मीडियाकर्मी अपनी जान की परवाह किए बगैर कोरोना वायरस महामारी की रिपोॄटग करके राष्ट्रीय कर्तव्य निभा रहे हैं, कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से दिया गया बयान उनके मनोबल को गिराने वाला है। असोसिएशन सोनिया गांधी से अपील करता है कि वह अपने इस सुझाव को एक स्वस्थ और स्वतंत्र मीडिया के हित में फौरन वापस लें। एनबीए अध्यक्ष ने कहा कि एक तरफ आॢथक मंदी के कारण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की विज्ञापनों से आय लगातार घटती जा रही है, दूसरी तरफ देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उद्योगों के बंद होने से उन पर दोहरी आॢथक मार पड़ रही है। न्यूज चैनल्स अपने रिपोर्टरों और प्रोडक्शन स्टाफ की सुरक्षा पर काफी खर्च कर रहे हैं। ऐसे समय में सरकारी व सार्वजनिक उपक्रमों के विज्ञापनों पर दो साल के लिए पाबंदी लगाने का सुझाव देना न सिर्फ असामयिक, बल्कि मनमानापूर्ण है।