परम्परागत गोला-बारूद, बम, मिसाइलों से ज्यादा खतरनाक है
यह विनाशकारी हथियार विषाणु, कीटाणु, वायरस या फफूंद जैसे संक्रमणकारी तत्वों से निर्मित किए जाते हैं
युद्ध में विरोधी सेना को बीमार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है
जैविक आतंकवाद का एण्टीडोज नहीं है ,रोकना जोखिम भरा भी साबित हो सकता है
जैविक आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार को मुस्तैद रहने की आवश्यकता है
भारत सरकार द्वारा अबतक किए गए प्रयासों की सराहना दुनिया भर में हो रही है
...अब पूरे देश को जैविक आतंकवाद से एकजुटता के साथ काम करना होगा
तभी हम इस तरह के जैविक आतंकवाद से पार पा पाएगे।
त्रिनाथ कुमार शर्मा
मानव इतिहास का अध्ययन धरती पर युद्ध के अस्तित्व की कहानी बयां करता है, जो कभी न समाप्त होने वाली गाथा है। दुनिया भर के लोग शांति की आज जितनी अधिक कामना करते हैं, उतने ही युद्ध में उलझते जा रहे हैं। कहीं विस्तार का युद्ध तो कहीं व्यापार का युद्ध। युद्ध चाहे सीमाओं को लेकर हो या संसाधनों के बंटवारे या फिर आतंकवाद के खौफनाक मंजर को समाप्त करने को लेकर हो, इन सभी के बीच कमोबेश मानव और मानवता ही शिकार बनती है। दहशत के माहौल में दुनिया नये-नये आधुनिक हथियारों की होड़ में लगी हुई है। पिछली एक सदी का इतिहास हथियारों की बेतहाशा प्रतिस्पर्धा से भरा पड़ा है।
सेंटर, फाॅरेन्सिक सेंटर आदि की स्थापना पर जोर देने की आवश्यकता है, साथ ही टीके और औषधियों पर शोध को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है, हालांकि भारत सरकार द्वारा अबतक किए गए प्रयासों की सराहना दुनिया भर में हो रही है। इस तरह के जैविक खतरों से निपटने के लिए राज्य और केन्द्र सरकारों को एकसाथ आना होगा, साथ ही पूरे देश को एकजुटता के साथ काम करना होगा। तभी हम इस तरह के जैविक आतंकवाद से पार पा पाएगे।
में लगभग 200 प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया, फंगस हमारे पर्यावरण में उपस्थित हैं। जैव हथियार आज के दौर में मानव जाति पर मंडरा रहे सबसे बड़े खतरों में से एक है। इससे निपटने के लिए दुनिया को अपनी तैयारी में और तेजी लाने की आवश्यकता है। भारत में डर और आतंक के इस जैविक रूप से निपटने के लिए गृह मंत्रालय नोडल एजेंसी है। साथ ही रक्षा मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, डीआरडीओ इत्यादि मुस्तैदी से इसपर कार्य कर रहीं है। आने वाला समय दुनिया के लिए चुनौतियों भरा है।