मंदिर आंदोलन के चर्चित चेहरों पर भारी पड़ा मोदी का आभामंडल 

का आधुनिक पैगाम! सियावर रामचंद्र की जय


  चर्चित जयघोष जय श्री राम से इतर जय सियाराम का उद्घोष मोदी की कूटनीतिक शैली को दर्शाता है?


तो क्या अब आगे भाजपाई बोलेंगे जय सियाराम?


मंदिर आंदोलन के चर्चित चेहरों पर भारी पड़ा मोदी का आभामंडल 


कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)


बाराबंकी। अप्रतिम, अद्भुत एवं अरबों आंखों को सुकून देने वाला  श्री राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में संपन्न हो गया।इस पवित्र मौके पर कई पंथ एवं तमाम मंदिरों के बड़े-बड़े संत तथा संघ प्रमुख मोहन भागवत ,राज्यपाल ,मुख्यमंत्री सहित कई गणमान्य लोग भी जुटे। लेकिन इस आयोजन में श्री मोदी का सियावर रामचंद्र की जय का उद्घोष एवं जय सियाराम का जयघोष लोगों को चौंका गया! मंदिर आंदोलन के चर्चित चेहरों पर उनका आभामंडल भारी पड़ा! तो इस दौरान उन्होंने चर्चित जयघोष जय श्री राम से सधी दूरी साध कई प्रश्नों को जन्म दे दिया?


श्री राम लला की नगरी अयोध्या में उत्सव की ऐसी परिणीति दिखाई दी कि उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। देश एवं विश्व के तमाम राम भक्तों ने भूमि पूजन के आनंददायक दृश्य को पूरे उत्साह के साथ सजीव प्रसारण के जरिए देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हनुमान जी के दर्शन किए। उन्होंने श्री राम जी को साष्टांग प्रणाम किया। भूमि पूजन स्थल पर माथा टेका तो  इस आयोजन में उपस्थित संतों का आशीर्वाद लिया। यही नहीं प्रधानमंत्री ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण पर प्रसन्नता जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह हमारी पीढ़ी के लिए मर्यादा एवं त्याग तपस्या का वह आधुनिक संदेश होगा जो श्री राम जी के चरित्र में हमें दिखता है। श्री मोदी ने अन्य तमाम बातें भी कहीं।


 मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत सियावर रामचंद्र की जय एवं जय सियाराम के जयघोष के साथ की। लोगों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री पूर्व की भांति जय श्रीराम के उद्घोष से बोलने की शुरुआत करेंगे। लेकिन मोदी तो एकदम से बदले हुए ट्रैक पर नजर आ रहे थे। उन्होंने अपने पूरे भाषण के दौरान राम जी की महिमा का वर्णन तो खूब किया ही। अलबत्ता राम जी के साथ माता जानकी का भी कई बार श्रद्धा से, आस्था से नाम लिया।


 लोग समझ नहीं पा रहे थे कि जय श्री राम जो कि श्री राम मंदिर आंदोलन के चर्चित जयघोष में से एक था उससे प्रधानमंत्री क्यों दूरी बना गए? क्या कूटनीतिक स्तर पर जब विपक्ष खासकर कांग्रेस के लोग जो राम भक्त होने का अब दावा करने लगे हैं? उनसे निपटने के लिए जय सिया राम का उद्घोष मोदी ने दिया। क्योंकि कांग्रेस अथवा कई विपक्षी नेता जय श्रीराम के उद्घोष से हमेशा दूरी बनाते दिखे हैं? वे जब मौका आया बोलने का तब जय सियाराम जरूर कहते सुने गए! ऐसे में मोदी ने क्या जय सिया राम का उद्घोष करके विपक्ष से यह जयघोष भी छीन लिया है?यह चर्चा का विषय तो है ही?


 इस संबंध में कई संतों का यह भी कहना था कि जब आक्रमक शैली अपनानी  होती है तब जय श्री राम का उद्घोष किया जाता है। लेकिन जब सौहार्दपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो उस स्थिति में जय सियाराम का जयघोष होता है। फिलहाल यह धार्मिक स्तर की बात है। लेकिन फिर भी मोदी के जय सियाराम में  कूटनीतिक शैली के सधी विधाओं के दर्शन को समझने के संकेत साफ नजर आ रहे हैं।


ऐतिहासिक क्षण में आज सबसे ज्यादा अगर किसी की कमी दिखाई दे रही थी वह थे श्री राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक पूर्व भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ।प्रधानमंत्री मोदी ने आडवाणी का एक बार भी नाम अपने भाषण में नहीं लिया। यही नहीं उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, सुश्री उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा जैसे मंदिर आंदोलन के कई अन्य चर्चित चेहरों का भी एक बार भी नाम नहीं लिया? जो एक जमाने में मंदिर आंदोलन के बड़े चेहरे अथवा महारथी माने जाते रहे हैं। इनमें से ऐसे भी चेहरे हैं जो आज भी मंदिर आंदोलन से जुड़े हुए मुकदमों को झेल रहे हैं। जाहिर है कि इन सभी योद्धाओं ने मंदिर आंदोलन में लाखों बार जय श्री राम का उद्घोष किया होगा। ऐसे में ऐसे कई महारथियों के चेहरों पर भी यहां उपस्थित होने पर यह सवाल दिखा कि आखिर प्रधानमंत्री ने जय श्री राम का उद्घोष क्यों नहीं किया? 


क्या मोदी ने सौहार्दपूर्ण स्थिति को प्रदर्शित करने के लिए चर्चित जय श्री राम के उद्घोष से दूरी बनाई? या फिर खुशी के मौके खुश होकर जय सिया राम का उद्घोष किया? हां यह जरूर रहा कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जरूर परम संत श्री रामचंद्र परमहंस एवं भाजपा पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी का नाम लिया। मोदी ने यह जरूर कहा कि जिन लोगों ने इसके लिए त्याग व बलिदान किया उनकी तपस्या आज मंदिर में नीव की ईट की तरह से निश्चित नजर आती है। वह उन्हें वंदन करते हैं। कुल मिलाकर मैं कृष्ण कुमार त्रिवेदी राजू भैया यह कहता हूं कि अब प्रधानमंत्री के इस नए जयघोष सियावर रामचंद्र की जय एवं जय सियाराम के बाद भाजपाई भी आने वाले दिनों में  जय श्रीराम के नारे को बगलगीर करते यदि नजर आए तो अतिश्योक्ति न होगी?दिलचस्प यह भी था कि एक जमाने में मंदिर आंदोलन के मंचों पर प्रमुखता से दिखाई देने वाले कई बड़े मंदिर महारथी नेता अथवा संत आज दर्शक दीर्घा में थे। सवाल यह भी है कि विपक्ष के लोग अब जय सियाराम कहेंगे या फिर जय श्री राम अथवा उनका जयघोष कुछ और होगा इस पर नजरें भी गड़ना लाजमी है। आज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के मर्यादित आदर्शों की यहां पर खूब चर्चा हुई। अब वर्तमान के राम भक्त श्री राम जी की मर्यादा अथवा उनके आदर्शों को जीवन में कितना उतारते हैं  यह तो आने वाला समय ही बताएगा?